एडिट प्लैटर का जन्म अपनी आवश्यकता और साथियों से विचार-विमर्श का नतीजा है। ख़ुद अपनी आवश्यकता इसलिए कि रोज़ सुबह एक अजीब सी दुविधा का सामना होता है। सामने सात-आठ तो अख़बार होते हैं, ऊपर से दुनिया भर की वेबसाइट, समाचार पोर्टल, फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टग्राम और न जाने क्या क्या! पढ़ें तो क्या पढ़ें! कहाँ से शुरू करें और कहाँ खत्म! कोई भी नीति-रणनीति अपनाएँ, स्वंय को अधूरा ही पाते।
कई काम की चीज़ें रह जातीं और कम काम की कई ग्रहण कर जाते। फिर समय भी सीमित होता है। दिन बढ़ने के साथ-साथ अधूरेपन का एहसास भी बढ़ता। कुछ विचारोत्तेजक कहीं छूट जाता तो कोई बेहतरीन खबर कहीं। कहीं किसी एक्सक्लूसिव, महत्त्वपूर्ण ख़बर से चूक जाते तो कभी किसी सटीक विश्लेषण से। और यह सब नज़र के खोट या कम समझ की वजह से नहीं होता है! दरअसल ख़बरों की दुनिया में कंटेंट की इस कदर भरमार है, करोड़ों-अरबों शब्द रोज़ लिखे जा रहे हैं, हजारों घंटों के वीडियो व ऑडियो बन रहे हैं; और इन सबमें इंटरनेट की असीम दुनिया को तो हम गिन ही नहीं रहे हैं। यह एक क़िस्म की ऐसी भूल-भूलैया है, जिसमें भटकाव का कोई अंत नहीं है।
तो, इसी कशमकश और दुविधा से निकला एडिट प्लैटर का सोच कि काश कोई होता जो इस सारी कंटेट और खबरों की दुनिया में एक छलनी या फ़िल्टर बनता जिससे छनकर हमारे पास सिर्फ़ श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ खबरें और विश्लेषण ही पहुँच पाते! कोई हमारे लिए सबकुछ पढ़-देख लेता और फिर जैसे शबरी रामचंद्र जी को चख-चख कर सिर्फ़ मीठे बेर ही देती थी, हमारे लिए भी कोई सिर्फ़ श्रेष्ठ ख़बरों का संकलन करता!
एडिट प्लैटर आपके लिए वह छलनी बनने का प्रयास है जो शबरी की तरह आप तक सिर्फ़ श्रेष्ठ ख़बर और विश्लेषण पहुँचाए, देश और दुनिया से। प्रिंट, टेलीविज़न और न्यू मीडिया की दुनिया से। सर्वश्रेष्ठ ख़बरों के इस संकलन में आपकी रुचि के अनुसार अलग-अलग प्लैटर होंगे, जैसे राजनीति, खेल, व्यवसाय, विश्व, मनोरंजन और वायरल इत्यादि।
एक और ख़ास बात होगी एडिट प्लैटर में जो शायद आपकी नज़र में हमें दूसरों से अलग बनाए। हमारा कोई राजनीतिक सोच नहीं है। कोई विचारधारा नहीं है। न ही किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष से हमारा लगाव या दुराव है। हम कहानी का हर पक्ष आपके सामने रखेंगे जिससे कि आप ख़ुद अपनी सोची-समझी राय बना सकें।
आज के युग में ऐसी बात करना अतिशयोक्ति जैसा है क्योंकि आधुनिक पत्रकारिता तो पक्ष लेने में विश्वास करती है। अपनी राय ठोक कर बताती है। और क्यों नहीं? कई लोगों का मानना है कि आज के युग में कोई भी मैच रैफ़री को देखने नहीं जाता। या तो आप एक टीम के समर्थन में होते हैं या फिर दूसरी के। नहीं तो घर बैठते हैं।
पर हम पत्रकारिता के पुराने स्कूल में विश्वास रखते हैं और चाहते हैं कि आप तक कहानी का हर पहलू पहुँचे। हर तर्क से आप परिचित हों और फिर अपनी राय खुद बनाएँ। ऐसा नहीं कि हमारी कोई राय नहीं होगी, लेकिन वह या तो हमारी सम्पादकीय राय में दिखेगी या फिर हमारे वरिष्ठ सहयोगियों और आमंत्रित टीकाकारों की टिप्पणियों और आलेखों में। यही नहीं, हमारी राय मुद्दों के आधार पर बनेगी और बदलेगी न कि शख़्सियतों और राजनीतिक विचारधारा के आधार पर। उम्मीद है कि ऐसा करते हुए हम आपके सामने बेहतर पत्रकारिता की नज़ीर बन पाएँगे।
अंग्रेज़ी की एक काफ़ी प्रचलित कहावत है कि दुनिया में कोई लंच या प्लैटर फ़्री नहीं होता। हम इस कहावत को ग़लत साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, आपको खबरों का सर्वश्रेष्ठ आहार परोस कर। बिलकुल मुफ़्त! एडिट प्लैटर के ज़रिये।