हरिद्वार 5.59

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2nd floor, kapoor complex. old ranipur more
Haridwar, 249408
India

About हरिद्वार

हरिद्वार हरिद्वार is one of the popular place listed under Tours/sightseeing in Haridwar , Tours & Sightseeing in Haridwar ,

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Details

हरिद्वार, हरिद्वार जिला, उत्तराखण्ड, भारत में एक पवित्र नगर है। हिन्दी में, हरिद्वार का अर्थ हरि "(ईश्वर)" का द्वार होता है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है।

३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रो में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम सा भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घडे से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घडे को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, और ये स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और प्रयाग| आज ये वें स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति ३ वर्षों में और १२वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुम्भ आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन, और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।

वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसंबर १९८८ को अस्तित्व में आया। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, १९९८' पारित किया, अंततः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००' पारित किया, और इस प्रकार ९ नवंबर, २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया।

प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार स्वर्ग जैसा सुन्दर है। हरिद्वार भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक बहुरूपदर्शक प्रस्तुत करता है। इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से भी किया गया है। यह चार धाम यात्रा के लिए प्रवेश द्वार भी है (उत्तराखंड के चार धाम है:- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), इसलिए भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते है। हर यानी शिव और हरि यानी विष्णु।
महाभारत के वनपर्व में धौम्य ऋषि, युधिष्टर को भारतवर्ष के तीर्थ स्थलों के बारे में बताते है जहाँ पर गंगाद्वार अर्थात् हरिद्वार और कनखल के तीर्थों का भी उल्लेख किया गया है।
कपिल ऋषि का आश्रम भी यहाँ स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम कपिल या कपिल्स्थान मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगीरथ, जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने ६०,००० पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर लाये। ये एक ऐसी परंपरा है जिसे करोडों हिन्दू आज भी निभाते है, जो अपने पूर्वजों के उद्धार की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसर्जित कर देते हैं। कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े है जो हर की पौडी में एक उपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहतीं हैं।

हिन्दू परम्पराओं के अनुसार, हरिद्वार में पांच तीर्थ गंगाद्वार (हर की पौडी), कुश्वर्त (घाट), कनखल, बिलवा तीर्थ (मनसा देवी), नील पर्वत (चंडी देवी) हैं.

हर की पौडी:

यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था. मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी. जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा. हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है. संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है. स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं. विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं. वर्तमान के अधिकांश घाट १८०० के समय विकसित किये गए थे.

चंडी देवी मन्दिर - ६ किमी

यह मन्दिर चंडी देवी जो कि गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर "नील पर्वत" के शिखर पर विराजमान हैं, को समर्पित है. यह कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा १९२९ ई में बनवाया गया. स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, चंड- मुंड जोकि स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ- निशुम्भ के सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं मारा था जिसके बाद इस स्थान का नाम चंडी देवी पड़ गया. मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी. मन्दिर चंडीघाट से ३ किमी दूरी पर स्थित है व एक रोपवे द्वारा भी पहुंचा जा सकता है. फोन: ०१३३४- २२०३२४, समय- प्रातः ८.३० से साँय ६.०० बजे तक.

मनसा देवी मन्दिर - ०.५ किमी

बिलवा पर्वत के शिखर पर स्थित, मनसा देवी का मन्दिर, शाब्दिक अर्थों में वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करतीं हैं, एक पर्यटकों का लोकप्रिय स्थान, विशेषकर केबल कारों के लिए, जिनसे नगर का मनोहर दृश्य दिखता है. मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ. फोन: ०१३३४- २२७७४५.

माया देवी मन्दिर - ०.५ किमी

११वीं शताब्दी का माया देवी, हरिद्वार की अधिष्ठात्री ईश्वर का यह प्राचीन मन्दिर एक सिद्धपीठ माना जाता है व इसे देवी सटी की नाभि व ह्रदय के गिरने का स्थान कहा जाता है. यह
उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं
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सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं मारा था जिसके बाद इस स्थान का नाम चंडी देवी पड़ गया. मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी. मन्दिर चंडीघाट से ३ किमी दूरी पर स्थित है व एक रोपवे द्वारा भी पहुंचा जा सकता है. फोन: ०१३३४- २२०३२४, समय- प्रातः ८.३० से साँय ६.०० बजे तक.

मनसा देवी मन्दिर - ०.५ किमी

बिलवा पर्वत के शिखर पर स्थित, मनसा देवी का मन्दिर, शाब्दिक अर्थों में वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करतीं हैं, एक पर्यटकों का लोकप्रिय स्थान, विशेषकर केबल कारों के लिए, जिनसे नगर का मनोहर दृश्य दिखता है. मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ. फोन: ०१३३४- २२७७४५.

माया देवी मन्दिर - ०.५ किमी

११वीं शताब्दी का माया देवी, हरिद्वार की अधिष्ठात्री ईश्वर का यह प्राचीन मन्दिर एक सिद्धपीठ माना जाता है व इसे देवी सटी की नाभि व ह्रदय के गिरने का स्थान कहा जाता है. यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं.

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